साधनाकीएकउपज"एकटहलतीहुईखुशबू" जिसमेंउपासकआत्माकेअधरसेकहरहाहै
प्यार दे दुलार दे, माँ तू सद्विचार दे
कोमल भावनाओं की कलियों को चुनचुन कर शब्दों की तार में पिरोने वाली मालिन- कवियित्री मोनिका हठीला से " एक खुशबू टहलती हुई" के मध्यम से मेरा पहला परिचय हुआ. ऐसा बहुत कम होता है कि पहली बार कुछ पढ़ो और वह अनुभूति दिल को छूती हुई गहरे उतर जाये. पर सच मानिये सीहौर के काव्य के संस्कारों ने जो खुशबू बिखेरी है वह टहलती हुई जिस दिशा में जाती है, वहीँ की होकर रह जाती है. हवाओं में, सांसों में, सशक्त शब्दावली की सौंधी- सौंधी महक रम सी जाती है.
यूंहीआवाराभटकतेयेहवाओंकेहुजूम
फ़िज़ूलहैंजोअगरझूमकेबरसातनहो
पढ़ते ही अक्स उभर आते है काले-काले बादलों के, रिमझिम-रिमझिम रक्स करती हुई बारिश के और धरती की मिटटी के महक के.
कहाकिसनेइनकोरेकागज़ोंसेकुछनहींमिलता
कभीशब्दोंमेंघुल-मिलजातीहैमल्हारकीखुशबू..स्वरचित
ऐसी ही महक मोनिका हठीला जी की कल-कल बहती काव्य सरिता से आ रही है. उनकी रचनात्मक गुलिस्तान के शब्द सुमन अनुपम सुन्दरता से हर श्रृंगार रस से ओत -प्रोत आँखों से उतर कर, रूह में बस जाने को आतुर है. मदमाती उनकी बानगी हमसे गुफ़्तार करती है-
कलियोंकेमधुबनसे
गीतोंकेचाँदचुने
सिन्दूरीक्षितिजोंसे
सपनेकेतारबुने
कविता तो आत्मा की झंकार है. कवि की रचना सह्रदय को अपनी रचना लगने लगे तो रचना की यही सबसे बड़ी सफ़लता है और यही उसकी सम्प्रेश्नीयता. लेखन कला ऐसा मधुबन है जिसमें हम शब्द बीज बोते है, परिश्रम का खाध जुगाड़ करते हैं, और सोच से सींचते है, तब कहीं जाकर इनमें इन्द्रधनुषी शब्द-सुमन निखरते हैं और महकते हैं.
काव्य के इस सौंदर्य -बोध को परखने के लिए भावुक पारखी ह्रदय की आवश्यकता है और यह टकसाल मोनिका जी को वरसे में मिली है. उनके अपने शब्दों में " सीहौर में कविता संस्कार के रूप में मिलती है और मुझे तो रक्त के संस्कार के रूप में मिली है अपने पिताश्री रमेश हठीला जी से और गुरु श्री नारायण कासट जी से " और इस विरासत को बड़ी संजीदगी से वे आशीर्वाद स्वरुप संजोकर रखती आ रहीं हैं. तभी तो उनकी आत्मा के अधर कह उठते हैं-
गीतोंमेंबसतेप्राण, मुझेगानेदो
कवितामेराईमान, मुझेगानेदो.
कवि बिहारी आम मुकुल जी का एक दोहा जो मुझे हमेशा लुभाता रहा है, इस सन्दर्भ में बड़ा ही उपयुक्त है; रस और महक का वर्णन करता काव्य कलश से छलकता हुआ मन को भीने-भीने अहसास से घेर लेता है -
छकि, रसानसौरभसने, मधुरमाधवीगंध
ठौर-ठौरझूमतझपट, भौंर -भौंरमधु-अंध
मोनिका जी की काव्य उपज में विचार और भाषा का एक संतुलित मेल-मेलाप आकर्षित करता है. शब्दों की सरलतम अभिव्यक्ति मन को सरोबार करती है: सादगी, सरलता, का एक नमूना पेश है--
यादोंकीबद्रीआ-आकर/ मेरेघरमेहमानहुई
जैसे यादों की वादी में कोई बे-आसमाँ घर हो, जिसमें हवाएं अपनी तमाम खुशबू के साथ भीतर आकर बसी हों, बिना किसी ख़बर के, बिना किसी सन्देश के.....
नख़तलिखतेनकोईपैग़ामभिजवाते
ऐसेमौसममेंकमसेकमबाततोकरलेते
जाने ये कैसा अपनापन है जो मोनिका जी की रचनायें किसी को अजनबी रहने ही नहीं देती ! खामोशियों में भी गुफ़्तार बरक़रार रखतीं हैं सहज सहज शब्दों में--
मैंनेअपनामुक़द्दरस्वयंपढ़लिया
मेरीतक़दीरहैमेरेगीतऔरग़ज़ल
येरूपझररहाहैमधुयामिनीमेंछनकर
इसरूपमेंनहाकरइकदिनज़िन्दगीलिखूंगीग़ज़ल
रचनात्मक भव्य भवन की नींव "एक खुसबू टहलती हुई" उनकी कुशलता का परिचय है, जिसमें मोनिका जी भावनात्मक शब्दावली की ईंटें करीने से वे सजाकर , अपने ही निर्माण की शिल्पकार बन गयी है. ऐसे काव्य के सुंदर सुमन इस गुलिस्तान में खिलते रहें, साथ साथ तन्मय करती कल कल बहती सुधी पाटकों को भाव विभोर करती रहे इसी अभिनन्दन एवं शुभकामनाओं के साथ ..
देवी नागरानी, ९-दी कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/३३ रोड, बंदर, मुंबई ५०. फ़ोन ९८६७८५५७५१/
काव्य-संग्रह : एल खुशबू टहलती हुई, लेखिका: मोनिका हठीला, पन्ने; १०४, मूल्य: रु.२५०. प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, प़ी. सी-.लैब,सम्राट काम्प्लेक्स, सीहौर ४६६००१.